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WHO WE ARE

Stand With Nature
is Non Governmental Organization.

Stand With Nature runs awareness campaign on climate change and dedicated to environmental protection on the issue of climate change across the country, which is working to make people aware about the environment through cycling trips, seminars, gatherings, competitions, webinars, and many other campaigns.

We believe economic and social development is essential for ensuring a favourable living and working environment for 
man and for creating conditions on earth that are necessary for the improvement of the quality of life. But it must not be the cost of environment.

Presently Climate change stresses ecosystem, species, food and farming, coastal erosion, health, damages to homes and lives through natural calamity.

This caused only because of our irresponsible behavior for nature and natural resources.

Stand With Nature is an organization in which our companions understand their responsibility for the environment and try to complete them. We hope that you will become our partner in our efforts and help us to aware more people about climate change, so that we can reduce potential loss from climate change.

स्टैंड विद नेचर देशभर में जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर जागरूकता अभियान व पर्यावरण संरक्षण को समर्पित एनजीओ है, जो देश में साइकिल यात्राओं, सेमिनार, सभा, प्रतियोगिताएं, वेबिनार, व अनेक अभियानों के जरिए पर्यावरण के प्रति लोगों को जागरूक करने का काम कर रही है।

स्टैंड विद नेचर सँस्था आपका ध्यान धरती पर  मंडराते एक बड़े खतरे जलवायु परिवर्तन (climate change) की ओर दिलाना चाहती है। आने वाले समय में हमें जलवायु परिवर्तन के गंभीर परिणामों जैसे बढ़ता तापमान, मौसम की चरम स्थितियां, जल संकट, चढ़ता समुद्री जलस्तर, महासागरीय अम्लीकरण, पारिस्थितिकी तंत्र में रुकावटों का सामना करना पड़ेगा।

वैसे तो इन समस्याओं का मूल कारण मानव सभ्यता ही है, लेकिन गौर करने पर पाएंगे कि हमारी सरकारों का पर्यावरण के प्रति बहुत उदासीन रवैया रहा है, जिसके खतरनाक परिणाम हमें भुगतने होंगे, जिनकी शुरुआत हो चुकी है। दशकों के अंतराल पर सभी राष्ट्रों के संगठनों के पर्यावरण पर समझौते रहें है, जिनमें तय होता है कि हम अपनी आने वाली पीढ़ियों को कैसा पर्यावरण देंगे। लेकिन आज पर्यावरण के हालातों को देखकर लगता है कि उन सरकारों या संस्थाओं ने इस विषय पर गम्भीरता से काम नही किया, जिसका परिणाम आज सब भुगत रहे हैं और आगे और भी खतरनाक स्थिति की ओर जा रहे हैं।


अगर देखा जाए तो हमारी इन सरकारों/संस्थाओं पर मानवाधिकार हनन का मामला बनता है। शुद्ध हवा, शुद्ध जल, पहाड़, जंगल, नदियां हर पीढ़ी का मूल अधिकार हैं और वर्तमान पीढ़ी की ज़िम्मेदारी बनती है कि इन सबको बनाए रखने में सहयोग करे। अगर वर्तमान परिस्थितियों को देखा जाए तो हम अपने पूर्वजों की अपेक्षा कई गुना तेजी से प्राकृतिक संसाधनों का दोहन कर इन्हें बर्बाद करने में कोई कसर नही छोड़ रहे हैं। सिंगल यूज प्लास्टिक, पानी की बर्बादी, वातावरण में बढ़ती ग्रीन हाउस गैसें, फसलों में जहरीले कीटनाशकों का प्रयोग, जंगलो को काटकर वहाँ बड़े-बड़े सीमेंट के जंगल बनाने में हम सब ही तो शामिल हैं। 


मानव जाति की वर्तमान पीढ़ी सभ्यता के लिए सबसे बड़ा ख़तरा साबित होने वाली है क्योंकि हम भारत में इस बारे में बात कर रहें है तो हमें इस विषय पर भी गम्भीरता से सोचना होगा कि आख़िर क्यों हम ही आज लालच में आकर उपजाऊ भूमि में ज़हर का छिड़काव कर भूमि को बंजर बनाना चाहते है? यहाँ सरकारी नीतियां किसानों को सबसे ज्यादा प्रभावित करती हैं इसलिए इसकी दोषी सरकारें भी हैं। ये कोई राजनैतिक द्वेष का विषय नही है, जलवायु परिवर्तन पर  हमें एक जनांदोलन की ज़रूरत है। इसके लिए हम सब को मिलकर सतत प्रयास करने होंगे । एक नए अध्ययन में पता चला है कि मोटे अनाज की तुलना में चावल जैसी खाद्यान्न फसलें जलवायु परिवर्तन के प्रति अधिक संवेदनशील हैं। इसीलिए जलवायु परिवर्तन के चलते खाद्य आपूर्ति की समस्या से निपटने में मोटे अनाज अच्छा विकल्प हो सकते हैं। किसान इन उपायों को अपनाकर जलवायु परिवर्तन से बचने के अभियान में सहयोगी रह सकते हैं।


कई राज्यो में तो  किसान ही इस आंदोलन के अगुवा नजर आते हैं। जैविक खेती करने वाले किसान प्रकृति और मानव जाति के सबसे बड़े हितैषी कहे जा सकते हैं। भारत में खेती के सामने दो अहम चुनौतियां हैं एक तो खाने में कीटनाशक न हों और दूसरा तेज़ी बढ़ रही जनसंख्या के लिए पर्याप्त भोजन भी उपलब्ध हो। जिस तरह से किसान जैविक खेती की ओर लौट रहे हैं अगर सरकारों का सहयोग मिला तो अगले 5-7 सालों में बाजार से रसायनिक खाने के सामान लगभग खत्म हो जाएंग , ये अपने आप में बड़ी उपलब्धि होगी।

जलवायु परिवर्तन वैसे तो पूरी दुनिया के लिए ही खतरा है लेकिन इसके कारणों में से एक वातावरण में मौजूद जहरीली गैसें और तैरते खतरनाक रेडिएशन हैं जो सबसे ज्यादा नवजात बच्चो के शारिरिक व मानसिक विकास को प्रभावित करेंगे, अगर वैश्विक तापमान को 2 डिग्री सेल्सियस से कम नहीं रखा जाता है, तो यह पूरी पीढ़ी के भविष्य के स्वरूप पर असर डालेगा। दिल्ली के बाल रोग विशेषज्ञों का कहना है कि बच्चों के फेफड़े अब गुलाबी नहीं- काले हो गए हैं। लांसेट पत्रिका में स्वास्थ्य और जलवायु परिवर्तन पर छपी रिपोर्ट के मुताबिक गर्म होती पृथ्वी का प्रभाव दुनिया के बच्चों पर पहले से ही पड़ रहा है। पिछले तीस सालों में सभी लोगों और निश्चित तौर पर बच्चों की मौतों की संख्या में गिरावट देखी गई। लेकिन यह चिंताजनक है कि अगर जलवायु परिवर्तन की समस्या से तत्काल नहीं निपटा गया, तो यह लाभ उलट जाएगा। हम केवल और ज्यादा आर्थिक लाभ और धन सम्बन्धी बहसें ही करते रह जाएंगे । जलवायु परिवर्तन की वजह से समुद्रों का जल स्तर पहले व्यक्त किए गए अनुमानों से कहीं ज़्यादा रफ़्तार से बढ़ रहा है। “नई रिपोर्ट कहती है कि सही समय पर अगर हम जलवायु परिवर्तन को रोकने में कामयाब नहीं होते हैं तो शोध के अनुमानों के अनुसार वर्ष 2050 में दुनिया भर में लगभग 30 करोड़ लोगों को समुद्री जल स्तर बढ़ने के कारण भीषण बाढ़ का सामना करना पड़ेगा.”
मानव जाति विलुप्ति की ओर बढ़ रही है , समय रहते हम सब को मिलकर इसपर कठोर कदम उठाने होंगे , हमें हर उस चीज पर सोचना होगा जो पर्यावरण को प्रभावित कर रही है ।a

 

दरअसल ये भविष्य की लड़ाई है। मेरे, आपके, बच्चो के सबके भविष्य की लड़ाई, जिसे हम सब को मिलकर लड़ना होगा। 

 

 स्टैंड विद नेचर संस्था के सुझाव व माँग निम्नलिखित है जिन पर हम सब की व सरकारों की भागीदारी भी जरूरी है -

  1.  प्राथमिक शिक्षा के पाठ्यक्रम में जलवायु ओर पर्यावरण  को शामिल किया जाए ।

  2. बच्चों में उनके आसपास के पेड़ों, पक्षियों, नदियों और पहाडों के बारे में सकारात्मक समझ विकसित की जाए। 

  3. पर्यावरण के बारे में ऊपरी तौर पर नही बल्कि आवश्यक रूप से अच्छी शिक्षा बच्चो को मुहैया करवाई जाए। 

  4. बड़ी फैक्टरियों से निकलने वाले ठोस कचरे को पानी में बहाने, मिट्टी में गाड़ने या जलाने की बजाए उससे उत्पादन के उन्नत तरीको में प्रयोग किया जाए।  बिजली बनाने, खाद बनाने, लघु उद्योगों में रिसाइकिल कर उत्पाद बनाने की दिशा में काम किया जाए।

  5. जल संचय, भूजलस्तर को बढ़ाने, पर जागरूकता अभियानों में तेजी लाकर आमजन को सीधा इनसे जोड़ना होगा। आज भी भारत के अनेक हिस्से सूखे की मार झेल रहे हैं। हमें समय रहते भूजलस्तर बढ़ाने और जल संचय करने पर काम करना होगा।

  6. पेंशनधारी बुजुर्गों को पेंशन बनने के साथ ही कम से कम एक पौधा देकर उसको बढ़ाने की जिम्मेदारी दी जाए, जिसका रिकॉर्ड आधिकारिक तौर पर ग्राम पंचायत के पास रहे।

  7. स्नातक करने वाले सभी विधार्थियों को कालेज के प्रथम वर्ष मे ही एक पौधा लगाना आवश्यक किया जाए।

  8. कागज या डिग्रेडेबल पैकेजिंग के कच्चे माल को सस्ता किया जाए व पैकेजिंग निर्माण के वेंचर्स को आर्थिक प्रोत्साहन दें। ताकि प्लास्टिक के अल्टरनेट सस्ते व सुलभ उपलब्ध हों। प्लास्टिक प्रोडक्ट बनाने वाली कम्पनियो को तुरन्त बन्द किया जाए।

  9. कृषि नीति को बदलना बहुत जरूरी है। अब सरकार तय करे कि खेतों में कितना उर्वरक और कीटनाशकों का छिड़काव होगा। मात्रा इतनी ही होगी जिससे जमीन और नदी को नुकसान न पहुंचे। उर्वरक ओर कीटनाशक सरकार ही कम से कम मूल्य पर किसान को उपलब्ध करवाए।

  10. प्रत्येक आई टी आई में डिग्रेडेबल पैकेजिंग उद्योग से सम्बंधित सर्टिफिकेट कोर्स शुरू किए जाएं।

  11. शहरों, गांव में हर घर में कचरा निपटान की तीन थैलियां पंहुचनी चाहियें,, जिनमें ठोस, गिला व नविनिकर्णीय कचरा अलग अलग रखा जाए। रोज घर के दरवाजे से सरकार इसे कलेक्ट करे और थैलियां जो अलग अलग रंग की हैं वापस कर दें। 

  12. सरकारें, कारोबार, निवेशक कार्बन उत्सर्जन को कम करने की दिशा में काम करें।

  13. सिंगल यूज प्लास्टिक का उपयोग बिल्कुल बन्द करें ।

  14. पर्यावरण संरक्षण हेतु मजबूत कानून बनाए जाएं, साथ ही उसके अमल में लाए जाने लायक सुविधाएं भी मुहैया कराई जाएं।

 

इस तरह के अनेक विषय है जिसपर हम सब को मिलकर काम करना होगा , आप भी अगर किसी ऐसे बिंदु पर काम कर रहें है तो हमें बताए , हम आपकी यथासंभव मदद करेंगे , आप हमें सम्बंधित सुझाव भी जरूर दें।

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